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वीडियो:आजादी के पचहत्तर साल बाद भी शिक्षा की रोशनी से दूर है कैमूर, सड़क और पानी है प्रमुख चुनावी मुद्दा ..

जंगली जानवरों के डर से बच्चे स्कूल नहीं जाते 15 किलोमीटर की दूरी पर मझिगवां में स्कूल बना हुआ है.गाँव के बच्चे विशाल अमती कुमारी बताती है, कि गाँव से स्कूल 15 किलोमीटर दूरी पर है ओ भी जंगली रास्ते से जाना पड़ता है डर से स्कूल नहीं जाते इस लिए पूरे गाँव में कोई पढ़ा लिखा नही है.

कैमूर टॉप न्यूज़,
भभुआ:
देश आजादी के 75 साल पूरा कर 76 साल में आ गया.किंतु कैमूर पहाड़ी के कई गाँव ऐसे है जहाँ शिक्षा की रौशनी अभी तक नहीं पहुंच पाई. इसका जीता जागता उदाहरण जिगनी गाँव है जो चैनपुर प्रखंड के कैमूर पहाड़ी पर बसा है. 60 घर की बस्ती है जहाँ महादलित के 300 लोग रहते है .जहाँ मूल भूत सुविधाओं का अभाव है.

गाँव के कई पीढियां गुजर गई पर शिक्षा नहीं ले पाई.कारण है कि गाँव में स्कूल नहीं है दूसरे गाँव स्कूल भी है तो पहाड़ी रास्ते और जंगल से जाना पड़ता है. जंगली जानवरों के डर से बच्चे स्कूल नहीं जाते 15 किलोमीटर की दूरी पर मझिगवां में स्कूल बना हुआ है.गाँव के बच्चे विशाल अमती कुमारी बताती है कि गाँव से स्कूल 15 किलोमीटर दूरी पर है ओ भी जंगली रास्ते से जाना पड़ता है डर से स्कूल नहीं जाते इस लिए पूरे गाँव में कोई पढ़ा लिखा नही है.
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गाँव में बच्चे जिसकी उम्र 12 से 13 है पर क ख ग घ और ए बी सी डी नहीं जानते,गाँव के ग्रामीण बिहारी,विक्रम, श्याम और चिरौंजी देवी बताती है कि स्कूल दूसरे गाँव में पहाड़ी रास्ते से 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.जंगली जानवरों से डर लगता है इस लिए कोई पढ़ा लिखा नहीं है.सिर्फ एक श्याम मुसहर पढ़ा है. जिसे वह विभाग केयर टेकर की नौकरी दी वह भी भभुआ में रह कर किसी तरह मैट्रिक पास है.

लोकसभा चुनाव में गाँव का शिक्षा,पानी,सड़क बनेगा चुनावी मुद्दा

बता दे कि कैमूर पहाड़ी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. केंद्र और बिहार सरकार की योजना तो चलती है पर सिस्टम की कमी और लापरवाही के कारण वनवासियों को कोई लाभ नहीं मिल पाती है.60 घर के बस्ती में सिर्फ 8 से 9 सरकारी आवास बना है तो पूरे गाँव में मात्र दो चापाकल है जिसमें एक खराब पड़ा हुआ है.जहां एक चापाकल के सहारे पूरा गाँव पानी पीता है.

पीएम खाद्य योजना भी नहीं मिलता सिर्फ 10 परिवार होंगे जिनको खाद्य योजना का लाभ मिलता है.बाकी को नहीं, सरकारी राशन दुकानदार दूसरे गाँव के रहने वाला है जब भी लोग राशन के लिए जाते है कोई न कोई बहाना बना देता है तो कभी राशनकार्ड नहीं होने का,कई लोकसभा चुनाव,विधानसभा, पंचायत चुनाव हुए पर नेता जी सिर्फ वोट के लिए गाँव में दिखाई देते है फिर इनकी समस्या का निदान करने वाला कोई नहीं है,अब देखना है कि इन बच्चों का भविष्य कैसे बनेगा क्या कभी गांव में स्कूल खुलता है या पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षा से दूर रहते है.
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